A leading caste in Bihar & Jharkhand

Social Hindrance – सामाजिक बाधा

मैं कई सालों से समाज को समझने, देखने और सुनने की कोशिश कर रहा हूँ। कुछ चीजें जो मुझे साफ नजर आती है जिसकी हमारे अंदर कमी है और मैं यहाँ उसके बारे में चर्चा करूँगा। निम्नलिखित बातों पर हमें ध्यान केंद्रित करना चाहिए जो मुझे लगता है कि समाज के अंदर कमी है:
१) लीडरशिप: हमारे अंदर लीडरशिप की कमी और जो लीडर है भी वे या तो सिर्फ कहलाने वाले या सिर्फ पद वाले लीडर है उनके अंदर लीडरशिप की सख्त कमी है। मेरा यहाँ लीडरशिप का मतलब सिर्फ नेताओ से नही है लीडरशिप का मतलब है दस लोगों के बीच में अपनी बातों को प्रभावी तरह से रखना, अपने संदेश को लोगों के बीच प्रभावी तरह से रखना और यह एक दिन में नही आ सकता है यह वर्षो का अथक प्रयास और सीखते रहने की लालसा के साथ शब्दो का भंडार भी होना अति आवश्यक है तभी आप सही और सार्थक शब्दो का चयन कर पाएंगे। और शब्दों का भंडार बढ़ाने के लिए किताबें पढ़ना बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है।

२) सुनने की क्षमता: यह बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है जिसके ऊपर हैम सबको ध्यान देने की आवयश्कता है क्योंकि अगर आपके अंदर सुनने की क्षमता नही है तो आप अच्छे वक्ता नही बन सकते है। अगर आप धैर्यपूर्वक किसी को भी किसी भी मुद्दे पर बात करते सुनेंगे तो जब आप बोलेंगे तब लोग आपको भी शांति से धैर्यपूर्वक सुनेंगे। सुनने से ज्ञान के बढ़ता है शब्दो का भंडार बढ़ता है लोग आपके बारे में कैसा सोचते है उसके बारे में पता चलता है। अगर आप किसी को ध्यान से सुनेंगे तो आप समस्या के बारे में नही समाधान के बारे में सोच पाएंगे। कुछ दिन पहले मैंने इस बात का जिक्र भी किया था कि अब हमें समस्या नही समाधान के बारे में बात करना चाहिए और यही समाज को जरूरत भी है। हम अगड़ी जातियों का उदाहरण देते है कि वे अपने समाज मे संगठित है हम नही है क्योंकि हम एक दूसरे को प्यार या समय देकर नही सुनते है। अगर मैं स्पष्ट होकर कहूँ हम पूरी बात नही सुनना चाहते है हम सिर्फ सार में विश्वास करते है। अगर आप सामाजिक तौर पर कुछ करना चाहते है तो लोगो को सुनने की क्षमता बढाइये और सबको यह बात समझाइये।

३) पढ़ने की क्षमता: यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ आज लोग सबसे कम समय व्यतीत करते है सबसे कम मतलब सबसे कम ज़िन्दगी में आप जो भी करते है २४ घंटे के दौरान सबसे कम अगर किसी चीज को आप करते है तो वह है पढ़ाई। पढ़ाई का मतलब यह नही है कि सोशल मीडिया पर कुछ प्रेरक उद्धरण या कोई प्रेरक या प्रेरणादायक फ़ोटो पढ़ ली और सोशल मीडिया पर शेयर कर दिए उससे ज्ञान नही बढ़ता है उससे आप अपने वास्तविक भाव या काम जो जिंदगी में करने होते है उससे भटकते है। पढ़ने का मतलब है चाहे आप किताब पढ़े या ऑनलाइन किंडल आधारित किताबें पढ़े लेकिन पढ़े जरूरी नही हर तरह की किताबें पढ़ी जाए आप अपने इच्छा अनुसार किसी भी विषय की किताबो को पढ़ने के लिए समय निकालें। अगर आपका ऐच्छिक विषय मे किताब सीमित मात्रा में उपलब्ध है तो वही पढ़े लेकिन बार बार पढ़े। इससे आपका ज्ञान तो बढ़ेगा ही साथ में शब्द भंडार भी बढ़ेगा। यह आपको एक अलग तरह की शांति के साथ साथ आत्मविश्वास भी आपके अंदर पैदा करेगी।

४) सोशल मीडिया से दूरी: जितना भी संभव हो सोशल मीडिया से दूर रहे और उस समय का उपयोग किसी रचनात्मक कार्यो में लगाएं। जैसे कुछ लिखना शुरू करे या पढ़ना शुरू करे। अगर आप सोशल मीडिया पर रहना ही चाहते है तो उसका उपयोग भी रचनात्मक रूप में करे ताकि लोग आपकी बातों से प्रेरित हो। कोशिश करे कुछ अपना लिखने की ताकि लोगों को आपके लेख से आपके लेखनी की खुशबू आये तभी लोग आत्मीयता महसूस करेंगे। ऐसे पोस्ट या ऐसे लेखों का क्या अस्तित्व जब लोग लाइक या कमेंट तो कर दे लेकिन उसका मर्म ही ना समझ पाए। इससे दो फायदे होंगे एक तो आप लिखते लिखते अपनी गलतियों पर सुधार कर पाएंगे और दूसरा आप अपने शब्दों के भंडार में बढ़ोतरी भी कर पाएंगे। हमारे लोग सोशल मीडिया पर क्या करते है ज्यादातर वे या तो दूसरों की कही बातें शेयर करते है या कोई फ़ोटो शेयर करते है जिससे साफ साफ झलकता है कि आप कितने कच्चे है। हो सकता है कइयों को इन बातों से बुरा लगेगा लेकिन यह कटु सत्य है।

५) विश्वास की कमी: हमारे समाज में इस बात की सख्त कमी है जिसकी वजह से हम एक नही हो पा रहे है। मैंने जो अभी तक देखा है लोग कुछ समय के लिए एक होकर चलने की बात तो करते है लेकिन कुछ समय के बाद आपस मे संशय, एक दूसरे के ऊपर विश्वास की सख्त कमी, एक दूसरे के प्रति सम्मान कम होने लगता है जिसकी वजह से समाज में बिखराव की स्थिति उत्पन्न होने लगती है। इसकी एक बड़ी वजह जो मुझे आजतक के सामाजिक संपर्क में नजर आया वह है अपनी गलती नही मानने की ज़िद। किसी भी तरह का आपसी संदेह, संशय, विश्वास, सम्मान की कमी कही ना कही एक गलती की वजह से होती है लेकिन हमारी गलती नही मानने की ज़िद हमें यह मानने को मना करता है जिसकी वजह से हम सामाजिक रिश्ते में दरार के रूप में देखते है। इसकी एक वजह और भी है कि हम अपने आप को दूसरों से ज्यादा समझदार और बुद्धिमान समझने लगते है और दूसरों को हम तुच्छ या कम बुद्धिमान समझने लगते है। हो सकता है कइयों को यह बुरा लगे लेकिन यह उतना ही सत्य है जितना प्रत्येक दिन सूर्य का पूर्व दिशा से उदयमान होना। इससे हम निजात पा सकते है अगर हम एक दूसरे को सुनने, समझने और मिलने का समय दे।

धन्यवाद।
शशि धर कुमार

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