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Identity Crisis – पहचान का संकट

ऐसा लगता है की हम identity crisis (पहचान के संकट) के दौर में ही है ऐसे ऐसे पोस्ट देखने को मिलते है जो आज भी यह साबित करता है की हम मानसिक तौर पर गुलामी में जी रहे है। हम यह निर्णय नहीं कर पा रहे है की हम क्या है और कहाँ से इसी वजह से हम पहचान के संकट के दौर से गुजर रहे है। लगता है की समाज जाग रहा है लेकिन जो युवा वर्ग है कही ना कही भटकाव में जी रहा है या किसी ऐसे अनचाहे लालच में हम जीने के आदि हो गए है जिसके बारे में सोचना नहीं चाहते है या सीधे भाषा में समझे तो कूप मंडूक हो रहे है कहने को तो स्मार्टफोन का उपयोग और अपने अपने व्यक्तिगत वाहनों पर घूम रहे है लेकिन हम नहीं जानते है की हम वाकई में क्या थे और आज क्या है।

मैंने कूप मंडूक शब्द का इस्तेमाल इसीलिए किया है क्योंकि यह वास्तिवकता में है और हम अपने उसी पुरातन वाले जीवन में जी रहे है जिसमे हमारी अपनी पहचान जिसको चौतरफा संकटो ने घेर रखा था और आज भी हम उसी पहचान के संकट के दौर में जी रहे है हमने ना तो इतिहास से सबक लिया और ना ही वर्तमान से कोई सीख लेना चाहते है। आँख मूंदकर कर उसी विश्वास में जी रहे है की हमारे आगे कोई नहीं बस हम ही है जो है किसी औकात हमारे सामने आँख उठाकर बात कर ले। लेकिन वास्तिवकता में आज भी हमारी कोई पहचान नहीं है जिसके ऊपर हम गर्व कर सके हो सकता है कइयों को यह बात गलत लगे लेकिन हम अपने गलतियों से सीखने के माहिर नहीं है। किसी ने मुझसे कहा था अपनी गलतियों से सीखने जाएंगे तो जिंदगी कम पड़ जाएगी दुसरो की गलतियों से सीखिए तो अपने आप को सुधार भी पाएंगे और समाज को वापस कुछ दे भी पाएंगे लेकिन यह अलग बात है कि जिन्होंने यह बात कही थी वे खुद इस बात पर खड़े नहीं रह सके।

एक दुसरो को नीचा दिखाने से कोई बड़ा नहीं होता और मैंने बारम्बार यह कहा है की सामाजिक कार्य में कोई बड़ा या छोटा नहीं होता ना ही किसी का कार्य समाज में उसके महान होने का साबुत है। इसीलिए हर व्यक्ति जो सामाजिक कार्यो को लेकर जागरूक है या किसी भी तरह से समाज की मदद करना चाहता है वे आगे आये और मदद करे समाज व्यक्ति से बनता है लेकिन मैंने अपने छोटे से सामाजिक संपर्क जीवन में बहुत सारे ऐसे बंधुओ को देखा है जो कहते थे की मुझे समाज की जरुरत नहीं है लेकिन एक समय के बाद वे खुद चलकर बोल रहे है एक समय जीवन में ऐसा आएगा जब आपको जरुरत पड़ती ही है। आइये हम सभी एक दूसरे का दामन थामकर एक दूसरे के काम आने का प्रयास करे यही मेरी कामना है।

आपका शुभचिंतक
शशि धर कुमार

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