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सामाजिक उत्थान कैसे हो सकता है

सामाजिक उत्थान कैसे हो

सामाजिक उत्थान कैसे हो

सामाजिक उत्थान कैसे हो – धानुक समाज के अंदर विश्वास की सख्त कमी है जिसकी वजह से हमेशा हम आपसी बिखराव की कगार पर होते है। हमारे अंदर जो आत्मविश्वास की कमी है वह प्राकृतिक है। क्योंकि ऐसी प्रवृती किसी दूसरे समाज में नहीं पायी जाती है। दुसरो की बातो को जल्दी ग्रहण करना भी बड़ी खामी है, दूसरे के बहकावे में जल्दी आ जाना, जिसका नतीजा हम आज तक भुगत रहे है। हमारी एकता ही हमारा उद्धार कर सकती है। जब तक हम लाखो की संख्या में एक नहीं होंगे हमारे समाज की भलाई नहीं हो सकती है। हमे आपस में सामंजस्य बनाना होगा, हमारी आपस की सहमति भी जरुरी है, हमारे समाज के लोगो का विश्वास भी जरुरी है। मेरी चिंता इस बात को लेकर भी है हम कितने असहनशील है, की हमे किसी एक व्यक्ति का सन्देश सही नहीं लगता है तो हम एक दूसरे पर दोषारोपण से भी बाज नहीं आते है।

हमारे कुछ सवाल है अपने समाज के कर्ता-धर्ता से जो निम्नलिखित है:

  • क्या हम ऐसे समाज को आगे ला पाएंगे?
  • क्या हमारे समाज की समझ एक तरह की हो पायेगी?
  • क्या हम कभी एक हो पाएंगे?
  • क्या हमारी मानसिकता एक होगी समाज को आगे लाने के लिए?

इस बात को हमारे समाज के लिए समझना पड़ेगा जिस समाज में 80-90% लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे आते है तो थोड़ा ध्यान रखा जाये। हमे सबको साथ लेकर चलना है लेकिन बहुतायत की बातो का समर्थन करते हुए आगे बढ़ना होगा। बिना पैसे के कोई सामाजिक कार्य नही हो सकता है मानते है लेकिन हमे यह भी समझना होगा की हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी है जिनकी आर्थिक स्तिथि वैसी नहीं है। क्योंकि उनके मन में हीन भावना पैदा ना हो इसीलिए सबका सहयोग और साथ जरुरी है। जब जरुरत होगी तब जो भी मजबूत होंगे समाज से वही तो मदद करेंगे। जब तक हम साथ नहीं चलेंगे हमारी कमजोरी सबको झलकती रहेगी। समाज एक व्यक्ति के कहने से ना तो आगे बढ़ता है और ना ही उसका उद्धार संभव है। समाज सबको साथ रखने से बढ़ता है। पैसा तो एक सीढ़ी है लक्ष्य तक पहुँचने के लिए और समाज को थोड़ा समय दे और सबको योगदान देने का मौका दे तभी समाज का भला होगा। हर आदमी बड़ा ही होता है, हर आदमी का अपना अपना योगदान है समाज के लिए, लेकिन हम यहाँ अपने समाज के लोगो के लिए इकठ्ठा हुए है। उनका सम्मान करना सीखना होगा हमे। कहते है हम जैसा खाते है, जैसा पहनते है, जैसे समाज के साथ रहते है उसी की वाणी हम बोलते है, हम भी उसी समाज से आते है तो हमे उसके बारे में सोचना होगा।

 

आप लोगो के सहयोग से हम अपने इस लक्ष्य में कामयाब होंगे। आपलोगो से हाथ जोड़कर करबद्ध प्रार्थना है की हम और आप आपस में प्यार बढ़ाये और एक दूसरे के सुख दुःख में साथ दे। हमारा लक्ष्य आपस में समाज के अंदर प्यार और सहिष्णुता और एकता स्थापित करना है। आज जिस दौर से हम गुजर रहे है यह दौर काफी संवेदनशील और नाजुक है जहाँ से हम अपने समाज के युवाओ को यह समझाने का प्रयत्न करे की हमें इस समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर इस देश के विकाश में योगदान करना है। हमारा भी बराबर का हक़ बनता है और इस संविधान ने यह बराबर का हक़ दिया है जीने का और हमे संवैधानिक तौर पर आगे बढ़ना पड़ेगा। किसी भी संगठन की मजबूती और उसका असर तब व्यापक होता है जब आप संख्या बल के स्तर पर उसे ज़मीन तक लेकर जाए। हमे अपनी ज़मीन तैयार करनी है, हमे अपने निचले तबके के भाईओं को जागना है। हमारी बहुत सारी कमजोरियां है जिससे हमे रूबरू होना अतिआवश्यक है। जिसके बिना हम अपने समाज के उथ्थान के बारे में सोच भी नहीं सकते। 

जय धानुक, जय भारत।

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2 Comments
  1. बहुत ही अच्छा लेख है इसे समाज के सभी लोग अपने अपने जीवन में उतार ले तो कल्याण निजश्चित है

  2. बहूत शूनदर लेख है धन्यबाद

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